42 साल के महेंद्र सिंह धोनी करिश्माई करने से चूक गए – Dhoni missed doing something charismatic

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Dhoni missed doing something charismatic

भारत के लिए खेलते हुए महेंद्र सिंह धोनी भले ही किसी क्लोज या फिर जरुरी मुकाबले में फेल हो जाते थे लेकिन सीएसके के लिए खेलते हुए शायद ही कोई ऐसा मैच होगा जिसमें वे कुछ करिश्माई करने से चूक गए हो। 42 साल की उम्र में रविवार को जब धोनी मुंबई इंडियंस के खिलाफ मैच में मैदान पर आते ही छक्कों की बरसात करने लगे तो धोनी को चाहने वाले लोगों में ख़ुशी की लहर दौड़ गयी थी। धोनी ने उस मैच में 4 गेंदों पर 20 रन बनाया था।

Dhoni missed doing something charismatic
Image Credit: BCCI & iplt20.com | Dhoni missed doing something charismatic

 

इससे पहले दिल्ली के विरुद्ध मैच में भी धोनी ने 16 गेंदों पर 37 रन की तूफानी पारी खेली थी। लेकिन एक तपका ऐसा भी है जिन्होंने इस आईपीएल में धोनी के इस ताबड़तोड़ बैटिंग के अंदाज़ को देखकर उनपर सवाल खड़े किया है।

Dhoni missed doing something charismatic

दरसल 2019 के वर्ल्ड कप में भारत को न्यूज़ीलैण्ड के हाथो मिली हार के बाद जब भी धोनी इस तरह की कोई पारी खेलते है तो कुछ लोग उस सेमिफाइनल मैच को याद करते हुए यह सवाल करते है कि उन्होंने इस अंदाज़ में उस वर्ल्ड कप और खास करके न्यूज़ीलैण्ड के खिलाफ मैच में क्यों बैटिंग नहीं की थी जब टीम इंडिया को उनकी बैटिंग की सबसे ज्यादा जरुरत थी। धोनी को चाहने वाले लोग तमाम तर्क देकर उन्हें सही साबित करने की कोशिश कर सकते है। लेकिन धोनी के आंकड़ों को देखकर ऐसा लगता है कि उन्हें इंडियन टीम से ज्यादा उनकी फ्रैंचाइज़ी टीम चेन्नई सुपर किंग्स से ज्यादा लगाव है।

2016 के बाद धोनी की बैटिंग में वो पुरानी नज़र बात नहीं आ रही थी। विकेट कीपिंग में वे तब भी चौधरी थे लेकिन बैटिंग से आक्रामकता पूरी तरह से गायब हो चुकी थी। उनकी स्लो बैटिंग के कारण पहले उनकी आलोचना हुई और फिर दबी आवाज़ में उन्हें टीम से ड्राप करने की मांग भी उठने लगी। लेकिन इन तमाम खामियों के बावजूद धोनी वर्ल्ड कप खेले। वर्ल्ड कप में सबसे पहले इंग्लैंड के खिलाफ मैच में उनकी बैटिंग पर सवाल उठे लेकिन इसके बावजूद धोनी को टीम में लगातार मौके मिलते रहे। लेकिन सेमिफाइनल में न्यूज़ीलैण्ड के विरुद्ध मैच में जब भारत को हार का सामना करना पड़ा तब लोगों का धोनी पर गुस्सा फुट पड़ा।

लगातार उनके बैटिंग स्ट्राइक रेट पर सवाल खड़े करने के बावजूद धोनी वर्ल्ड कप मैच में अपनी स्ट्राइक रेट को सुधार नहीं पाए लेकिन वही धोनी आईपीएल में गज़ब का प्रदर्शन कर रहे थे। 2018 के आईपीएल में धोनी ने 16 मैचों में 75. 83 की लाजवाब औसत से 455 रन बनाया था। इस सीजन उनका स्ट्राइक रेट 150. 66 का था। 2019 के आईपीएल में भी धोनी ने अपना वही प्रदर्शन दोहराया था। उस सीजन 15 मैचों में 83. 20 की औसत से उनके बल्ले से 416 रन निकले थे। इस बार उनका स्ट्राइक रेट 134. 62 का रहा था। इसके बाद के सीजन में भी धोनी भले ही बैटिंग के लिए नीचे आए हो लेकिन सिर्फ 2021 के आईपीएल को छोड़ कर हर सीजन में धोनी का स्ट्राइक रेट शानदार रहा है।

धोनी की बैटिंग ही सिर्फ एक मात्र वजह नहीं है जो यह दर्शाता है कि उन्हें नेशनल टीम से ज्यादा अपनी फ्रैंचाइज़ी टीम से लगाव है। याद कीजिए 2022 का आईपीएल। उस सीजन धोनी नहीं, बल्कि जडेजा सीएसके की कप्तानी कर रहे थे। सीएसके का प्रदर्शन उस सीजन बेहद ही निराशाजनक रहा था। माना जा रहा था कि वो धोनी का आखिरी आईपीएल सीजन होगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। पहले तो धोनी ने बीच सीजन में जडेजा से कप्तानी हथियाई और फिर अगले सीजन में हिस्सा लेने की खबर को भी कन्फर्म किया। इसके बाद 2023 के आईपीएल में सीएसके एक बार फिर धोनी की कप्तानी में चैंपियन बना।

इसके उलट जब 2014 में भारत धोनी के कप्तानी में लगातार टेस्ट क्रिकेट में हार का नया रिकॉर्ड बना रही थी तब धोनी ने टीम को वापस पटरी पर लाने की कोशिश करने की बजाय टीम को बीच मझधार में छोड़कर टेस्ट क्रिकेट को अलविदा कह दिया। उस वक़्त धोनी मात्र 33 साल के थे। वो कम से कम और तीन साल टेस्ट क्रिकेट खेल सकते थे लेकिन आज जैसे चेन्नई सुपर किंग्स के लिए धोनी खुद को तैयार करके हर साल मैदान पर उतरते है वैसी कोशिश उन्होंने भारत के लिए नहीं किया। कुछ लोग यह कह कर धोनी को डिफेंड कर सकते है कि रिटायरमेंट लेकर उन्होंने युवा खिलाड़ीयो को मौका दिया लेकिन 2016 के बाद जब धोनी भारत की वनडे और टी 20 टीम पर बोझ बन गए थे तब उन्होंने क्रिकेट से रिटायरमेंट लेने का फैसला क्यों नहीं किया।

आज 43 साल की उम्र में धोनी आईपीएल में कैच पकड़ने के लिए डाईव मरते हुए नज़र आते है। उनकी ऐसी विकेटकीपिंग को देखर लोग उनकी तारीफ करते है। लेकिन समझ नहीं आता है कि न्यूज़ीलैण्ड के खिलाफ सेमिफाइनल में उन्होंने ऐसा करतब क्यों नहीं दिखाया। क्यों वो आईपीएल में जैसे छक्के चौके मरते है वैसे अंदाज़ में उन्होंने 2019 के वर्ल्ड कप में बैटिंग नहीं की।
2011 के वर्ल्ड कप में धोनी ने छक्का लगाकर भारत को वर्ल्ड चैंपियन बनाया था।

लेकिन बताईए उस छक्के में ऐसा क्या स्पेशल था ? क्या धोनी ने वो छक्का आखिरी गेंद पर लगाया था? नहीं। जब धोनी ने वो छक्का मारा था तब भारत को 11 गेंदों पर 4 रनों की दरकार थी और 6 विकेट भी बचे थे। ऐसे में धोनी की जगह पर कोई और बैट्समैन भी होता तो वो भी वर्ल्ड कप फाइनल जैसे बड़े मंच पर छक्का मार कर ही मैच को जीताने की प्रयास करता।

2018 के निदहास ट्रॉफी के फाइनल में दिनेश कार्तिक ने एक हाई प्रेशर वाले गेम में भारत को एक शानदार जीत दिलाई थी। इस मैच ने करोड़ो भारतीय दर्शको की दिल के धड़कनों को रोक कर रख दिया था। तब दिनेश कार्तिक ने आखरी गेंद पर छक्का जड़कर भारत को एक इम्पॉसिबल जीत दिलाई थी। लेकिन दुर्भाग्य देखिये कोई इस मैच को याद नहीं करता है। लोग याद करते है तो बस धोनी के उस छक्के को।

सच बताइये 2011 के वर्ल्ड कप फाइनल में तेंदुलकर और सहवाग के पवेलियन लौटने के बाद क्या उस मैच में आपको उसके अलावा एक बार भी ऐसा महसूस हुआ था कि अब भारत के लिए जीत नामुमकिन है। कम से कम गंभीर के क्रीज़ पर जम जाने के बाद तो यह बात किसी के मन में नहीं आयी होगी।

अब छक्के की बात कर रहे है तो 2017 में वेस्टइंडीज और भारत के बीच खेले गए उस टी20 मैच को याद करिए जिसमें वेस्ट इंडीज की टीम ने भारत के सामने 20 ओवर में 245 रन का टारगेट सेट किया था। उस मैच में के एल राहुल ने शतक जमाया था। और भारत को जीत के लिए आखिरी गेंद पर दो रन चाहिए था। धोनी स्ट्राइक पर थे, उन्होंने बल्ला ज़ोर से घुमाया लेकिन गेंद बॉउंड्री लाइन के बहार जाने के बजाय थर्ड मैन पर खड़े फील्डर के हाथो में चली गयी और भारत यह मैच हार गया।

 

 

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